मंगलवार, 25 अक्तूबर 2011

!! श्रीमहालक्ष्मी पूजन !!

श्री यन्त्र

 

Shree Yantraइस यन्त्र को धन वृद्धि, धन प्राप्ति, क़र्ज़ से सम्बंधित धन पाने के लिए उपयोग में लाया जाता है | इस यन्त्र की अचल प्रतिष्ठा होती है इस यन्त्र को व्यापार वृद्धि में रखा जाता है तथा जीवन भर लक्ष्मी के लिए दुखी नहीं होना पड़ता |

कुबेर यन्त्र :-

Shree Kuber Yantra
इस यन्त्र की स्थापना के पश्चात दरिद्रता का नाश होकर धन व यश की प्राप्ति होती है स्वर्ण लाभ, रत्ना लाभ, गड़े हुए धन का लाभ एवं पैतृक सम्पति का लाभ चाहने वालो के लिए कुबेर यन्त्र अत्यंत सफलता दायक है | यह अनुभूत परीक्षित प्रयोग है इस यन्त्र की अचल प्रतिष्ठा होती है |

महालक्ष्मी यन्त्र

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इस यन्त्र की चल या अचल दोनों तरह से प्रतिष्ठा की जाती है रंक को राजा बनाने का सामर्थ्य है इसमें | सिद्ध होने पर यह यन्त्र व्यापार वृद्धि दारिद्र्य नाश करने व ऐश्वर्य प्राप्त करने में आश्चर्य जनक रूप से काम करता है | इस अभिमंत्रित यन्त्र का पूजन करने से माता लक्ष्मी वर्ष प्रयन्त उस स्थान में निवास करती है तथा अपने भक्तगणों को अनुग्रहित करती है |


 
मां महालक्ष्मी 
 !! श्रीमहालक्ष्मी पूजन !!
पुजनसामग्री-घर से- दुध,दही,घी(देशी गाय का हो तो अति उत्तम),शहद,गंगाजल,आम्रपत्र,बिल्व पत्र,,दुर्वांकुर,फुल,फल,लोटा,थाली,शंख,घन्टी,पीला चावल,शुध्द जल. 
मार्केट से-श्री यन्त्र,कुबेर यन्त्र,महालक्ष्मी यन्त्र,महाकाली का चित्र,हल्दी गांठ-९,पुजा सुपारी-११,जनेऊ-४,सिन्दुर,गुलाल,मौली धागा,इत्र(गुलाब,चन्दन,मोगरा),कमल का फुल-३,कमल गट्टा,रितुफल,नारियल-४,मिष्ठान,ताम्बुल(जो पान की पत्ती आप सेवन करते है),चन्दन,बंदन.धान का लावा,तिल का तेल /सरसों के तैल
इन सामग्रियो की व्यवस्था करके पुजन प्रारंभ करे! 
पुजन विधि-सर्व प्रथम शुध्द होकर पश्चिमाभिमुख(क्योकि महालक्ष्मी कि रात्रि कालीन पुजा पश्चिमाभिमुख हो कर ही की जाती है)  हो कर बैठ जाये फिर सर्वप्रथम पवित्री करण करे !
लोटे में जल लेकर उसमें थोडा सा गंगा जल मिला कर अपनें ऊपर छिडके तथा ये भावना करे कि हम पवित्र हो रहे है!
Diwali दीपावली के दिन शुभ मुहूर्त Muhurta में घर में या दुकान में, पूजा घर के सम्मुख चौकी बिछाकर उस पर लाल वस्त्रबिछाकरलक्ष्मी-गणेश की मुर्ति या चित्र स्थापित करें तथा चित्र को पुष्पमाला पहनाएं। मुर्तिमयी श्रीमहालक्ष्मीजी के पास ही किसी पवित्र पात्रमें केसरयुक्त चन्दनसे अष्टदल कमल बनाकर उसपर द्रव्यलक्ष्मी-(रुपयों) को भी स्थापित करके एक साथ ही दोनोंकी पूजा करनी चाहिये। पूजन-सामग्री को यथास्थान रख ले। ।इसके पश्चात धूप, अगरबती और ५ दीप (5 deepak) शुध्द घी के और अन्य दीप तिल का तेल /सरसों के तैल (musturd oil) से प्रज्वलित करें। जल से भरा कलश Kalash भी चौकी पर रखें। कलश में मौली बांधकर रोली से स्वास्तिक का चिन्ह अंकित करें। तत्पश्चात श्री गणेश जी को, फिर उसके बादलक्ष्मी जी को तिलक करें और पुष्प अर्पित करें। इसके पश्चात हाथ में पुष्प, अक्षत, सुपारी, सिक्का और जल लेकर संकल्प sankalp करें।
संकल्प 
मैं (अपना नाम बोलें), सुपुत्र श्री (पिता का नाम बोलें), जाति (अपनी जाति बोलें), गोत्र (गोत्र बोलें), पता (अपना पूरा पता बोलें) अपने परिजनो के साथ जीवन को समृध्दि से परिपूर्ण करने वाली माता महालक्ष्मी (MahaLakshmi) की कृपा प्राप्त करने के लिये कार्तिक कृष्ण पक्ष की अमावस्या के दिन महालक्ष्मी पूजन कर रहा हूं। हे मां, कृपया मुझे धन, समृध्दि और ऐश्वर्य देने की कृपा करें। मेरे इस पूजन में स्थान देवता, नगर देवता, इष्ट देवता कुल देवता और गुरु देवता सहायक हों तथा मुझें सफलता प्रदान करें।
यह संकल्प पढकर हाथ में लिया हुआ जल, पुष्प और अक्षत आदि श्री गणेश-लक्ष्मी (Shree Ganesha-Laxmi) के समीप छोड दें।
इसके बाद एक एक कर के गणेशजी (Ganesha), मां लक्ष्मी (Mata Laxmi), मां सरस्वती (Accounts Books/Register/Baheekhaata), मां काली (Ink Pot Poojan ), धनाधीश कुबेर Lord Kuber(Tijori/Galla), तुला मान की पूजा करें। यथाशक्ती भेंट, नैवैद्य, मुद्रा,   आदि अर्पित करें।
दीपमालिका पूजन
किसी पात्रमें 11, 21 या उससे अधिक दीपों को प्रज्वलित कर महा  लक्ष्मी MahaLakshmi के समीप रखकर उस दीप-ज्योतिका “ओम दीपावल्यै नमः” इस नाम मंत्रसे गन्धादि उपचारोंद्वारा पूजन कर इस प्रकार प्रार्थना करे-
त्वं ज्योतिस्तवं रविश्चन्दरो विधुदग्निश्च तारकाः |
सर्वेषां ज्योतिषां ज्योतिर्दीपावल्यै नमो नमः ||
Deepamaalika दीपमालिकाओं का पूजन कर अपने आचार के अनुसार संतरा, ईख, पानीफल, धान का लावा इत्यादि पदार्थ चढाये। धानका लावा (खील) गणेश Ganesha, महा लक्ष्मी MahaLaxmi तथा अन्य सभी देवी देवताओं को भी अर्पित करे। अन्तमें अन्य सभी दीपकों को प्रज्वलित कर सम्पूर्ण गृह को अलंकृत करे। 
हवन विधि 
श्री सुक्त 
!!श्री गणेशाय नमः!!
हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम् । 
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो ममावह ।1।

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् । 
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ।2।

अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रमोदिनीम् 
श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ।3।

कांसोस्मि तां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् ।
पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम् ।4।

चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलंतीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम् । 
तां पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ।5।

आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः ।
तस्य फलानि तपसानुदन्तुमायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः ।6।

उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह ।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेस्मिन्कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ।7।

क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् ।
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुदमे गृहात् ।8।

गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् । 
ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् ।9।

मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि। 
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ।10।

कर्दमेन प्रजाभूतामयि सम्भवकर्दम। 
श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ।11।

आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीतवसमे गृहे।
निचदेवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ।12।

आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम्।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ।13।

आर्द्रां यःकरिणीं यष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ।14।

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावोदास्योश्वान्विन्देयं पुरुषानहम् ।15।

यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम्।
सूक्तं पञ्चदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत् ।16।
उपरोक्त श्री सुक्त के प्रत्येक श्लोक को (ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद-प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महा लक्ष्मै नमः! ह्रीं श्रीं दुर्गे हरसि भितिमशेष जंतौःस्वस्थैःस्मृतामति मतीव शूभां ददासि !)  फिर श्री सुक्त का १ शलोक तत् पश्चात (दारिद्र्य दुख भय हारिणि का त्वादन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्र चित्ता !ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद-प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महा लक्ष्मै नमः! कहने के बाद स्वाहा कहते हुए अग्नि मे आहुति डाले !इसी प्रकार श्री सुक्त के १६ श्लोको पर बिल्व पत्र को घृत में डूबा कर आहुति प्रदान करनी है ! उदाहरणार्थ ः-ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद-प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महा लक्ष्मै नमः! ह्रीं {श्रीं दुर्गे हरसि भितिमशेष जंतौःस्वस्थैःस्मृतामति मतीव शूभां ददासि !
हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम् ।
 चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो ममावह ।1।
दारिद्र्य दुख भय हारिणि का त्वादन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्र चित्ता !ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद-प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महा लक्ष्मै नमः!}


महात्म्य

पद्मानने पद्म ऊरू पद्माक्षी पद्मसम्भवे।
तन्मेभजसि पद्माक्षी येन सौख्यं लभाम्यहम् ।17।

अश्वदायी गोदायी धनदायी महाधने।
धनं मे जुषतां देवि सर्वकामांश्च देहि मे ।18।

पद्मानने पद्मविपद्मपत्रे पद्मप्रिये पद्मदलायताक्षि। 
विश्वप्रिये विश्वमनोनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि संनिधत्स्व ।19।

पुत्रपौत्रं धनं धान्यं हस्त्यश्वादिगवेरथम्।
प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु मे ।20।

धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसुः।
धनमिन्द्रो बृहस्पतिर्वरुणं धनमस्तु ते ।21।

वैनतेय सोमं पिब सोमं पिबतु वृत्रहा।
सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु सोमिनः ।23।

न क्रोधो न च मात्सर्यं न लोभो नाशुभा मतिः।
भवन्ति कृतपुण्यानां भक्तानां श्रीसूक्तं जपेत् ।24।

सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांशुकगन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ।25।

विष्णुपत्नीं क्षमादेवीं माधवीं माधवप्रियाम्।
लक्ष्मीं प्रियसखीं देवीं नमाम्यच्युतवल्लभाम् ।26।

महालक्ष्मी च विद्महे विष्णुपत्नी च धीमहि तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ।27।

श्रीवर्चस्वमायुष्यमारोग्यमाविधाच्छोभमानं महीयते।
धान्यं धनं पशुं बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायुः ।28।


आरती एवं पुष्पांजलि
गणेश, लक्ष्मी और भगवान जगदीश्वर की आरती Aarati करें। उसके बाद पुष्पान्जलि अर्पित करें,क्षमा Kshamaa प्रार्थना करें। 
विसर्जन
पूजनके अन्तमें हाथमें अक्षत लेकर नूतन गणेश एवं महाललक्ष्मीकी प्रतिमाको छोडकर अन्य सभी आवाहित, प्रतिष्ठित एवं पूजित देवताओं को अक्षत छोडते हुए निम्न मंत्रसे विसर्जित करे-
यान्तु देवगणाः सर्वे पूजमादाया मामकीम् |
इष्टकामसमृध्दयर्थं पुनरागमनाया च ||
टीपः-
मंदिर, तुलसी माता, पीपल आदि के पास दीपक जलाना नहीं भुलना।
लक्ष्मी पूजा में तिल का तेल का उपयोग ही श्रेष्ठ होता  है | अभाव में सरसों का इस्तमाल कर सकते है |
संकलन कर्ता :-पंडित- भास्कर शास्त्री







शुक्रवार, 10 जून 2011

श्री गणेश स्तोत्रम्

देवों में प्रथम पुज्य भगवान गणपति की पुजा,साधना,आराधना,ध्यान और स्थापना जीवन के प्रत्येक शुभ कार्य में आवश्यक है,अतः अपने पुजा स्थान में गणेश जी को स्थापित करके स्तोत्र पाठ ,वंदना अवश्य करनी चाहिए !जहां गणपति स्थापित होते है वहां ऋध्दि-सिध्दि,शुभ-लाभ  अपने आप स्थापित हो जाते है !दिन की शुरुवात गुरु पुजन और गणपति पुजन से करनी चाहिए,विध्नविनाशक गणपति को देवों का अधिपति तथा प्रथम पुज्य माना जाता है,उनका ध्यान,वंदन,पुजन जीवन में निरन्तर कल्याणकारी माना जाता है,जिन्के बारे में ये कहा जाता है कि-विद्यारंभे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा !संग्रामे संकटे चैव विध्नतस्य न जायते !!                                                अर्थात् विद्या प्रारंभ करने के समय,विवाह के समय,गृह प्रवेश के समय,घर से बाहर जाते समय,यात्रा प्रारंभ करने के पहले,युध्द मे जाने के पहले,संक़ट के समय जो विध्नविनाशक,वरदायक भगवान गणपति की वंदना करता है,उसकी सदैव विजय होती है ! क्योकिं जहां गणेश जी है वहां आदि देव शिवजी और माता पार्वती है,वहां ऋध्दि और सिध्दि है,शुभ और लाभ है !अर्थात् जीवन का सम्पुर्ण आनंद है ! प्रस्तुत स्तोत्र गणेश आराधना मे महत्वपुर्ण स्थान रखता है,जिसका नित्य प्रति और विशेषकर बुधवार को तथा प्रत्येक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को अवश्य पाठ करना चाहिए !                                                                                 ऊंकारमांद्यं प्रवदन्ति सन्तो वाचः श्रुतीनामपि ये गुणन्ति !गजाननं देव- गणानताध्रि भजे$हमर्ध्देन्दु -कृतावतंसम् !!१ !!पादारविन्दार्चन तत्पराणां संसार - दावानल भङ्ग-दक्षम ! निरन्तरं निर्गत-दान-तोयैस्तं नौमि विध्नेश्वरमम्बुजाभम् !!२!! कृताङ्ग-रागं नव-कुंकुमेन,मत्तालि-मालां मद-पङ्क-लग्नाम ! निवारयन्तं निज-कर्ण-तालैः,को विस्मरेत् पुत्रममङ्ग-शत्रोः !!३!! सम्भोर्जटा-जुट-निवासि-गंगा-जलं समानीय कराम्बुजेन ! लीलाभिराराच्छिवमर्चयन्तं,गजाननं भक्ति-युता भजन्ति !!४!!कुमार-भुक्तौ पुनरात्म-हेतोः,पयोधरौ पर्वत-राज-पुत्र्याः!प्रक्षालयन्तं कर-शीकरेण,मौग्ध्येन तं नाग-मुखं भाजामि !!५!!त्वया समुद्-धृत्य गजास्य हस्तं,संशीकराःपुष्कर-रन्ध्र-मुक्तः!व्यामाङ्गेन ते विचरन्ति ताराः,कालात्मना मौक्तिक-तुल्य-भासः !!६!!क्रीडा-रते वारे-निधौ गजास्यै,वेलामतिक्रामति वारि पुरे !कल्पावसानं परिचिन्त्य देवाः,कैलाश-नाथं श्रुतिभिः स्तुवन्ति !!७!!नागानने नाग-कृतोत्तरीये,क्रीडा-रते देव-कुमार-सङ्गे!त्वयि क्षणं काल-गति विहाय,तौ प्रापतुः कन्दुकतामिनेन्दु !!८!!मदोल्लसत्-पञ्च-मुखैरजस्त्रमध्यापयन्तं सकलागमार्थान् !देवान् ऋषीन् भक्त-जनैक-मित्रं,हेरम्बर्कारुणमाश्रतामि !!९!! पादाम्बुजाभ्यामति-कोमलाभ्यां,कृतार्थ्यन्तं कृपया घरित्रीम् ! अकारणं कारणमाप्त -वाचां,तन्नाग-वक्त्रं न जहाति चेतः !!१०!!येनापितं सत्यवती-सुताय,पुराणमालिख्य विषाण-कोटच्या !तं चन्द्रमौलिस्तनयं तपोभिराराध्यमानन्द-धनं भजामि !!११!!पदं श्रुती-नामपदं स्तुतीनां,लीलावतारं परमात्म-मुर्ते !नागात्मको वा पुरुषात्मको वेत्यभेद्यमाद्यं भज विध्न-राजम!!१२!!पाशांकुशौ भग्नरदं त्वभीष्ट,करैर्दधानं कर-रन्घ्र-मुक्तै !मुक्ता-फलाभैः पृथु-शीकरौधैः,सिञ्चन्त्मङ्गं शिवयोर्भजामि!!१३!!अनेकमेकं गजमेक-दन्तं,चैतन्य-रुपंजगदादि-बीजम् !ब्रम्होति यं ब्रम्हा-विदो वदन्ति,तं शम्भु-सूनुं सततं भजामि!!१४!!अङ्के स्थिताया निज-वल्लभाया,मुखाम्बुजालोकन-लोल-नेत्रम !स्मेराननाब्जं मद-वैभवेन,रुध्दं भजे विश्व-विमोहनं तम् !!१५!!ये पुर्वाराध्य गजाननं!त्वां,सर्वाणि शास्त्राणि पठन्ति तेषाम् !त्वत्तो न चान्यत् प्रतिपाद्यमस्ति,तदस्ति चेत् सत्यन्सत्य-कल्पम् !!१६!!हिरण्य वर्ण जगदीशितारे,कवि पुराणं रवि-मण्डलस्थं!गजाननं यं प्रवदन्ति सन्तस्तत् काल-योगैस्त्महं प्रपद्ये!!१७!!वेदान्त गीतं पुरुषं भजे$हमात्मानमानन्द-घनं हृदिस्थम् !गजाननं यन्महसा जनानां,विध्नान्धकारो विलयं प्रयाति !!१८!!शम्भोः समालोक्य जटा-कलापे,शशाङ्क-खन्डं निज-पुष्करेण! स्व-भग्न-दन्तं प्रविचिन्त्य मौग्ध्यादाकर्ष्ट-कामः श्रियमातनोतु!!१९!!विध्नार्गलानां विनिपातनार्थ,यं नारिकेलैः कदली-फलाद्यैः !प्रभावयन्तो मद-वारणास्यं,प्रभु सदा$भीष्टमहं भजेतम् !!२०!!यज्ञैरनेकैर्बहुभिस्तपोभिराराध्य्माद्यं,गज राज वक्त्रम् !स्तुत्या$नया ये विधिना स्तुवन्ति,ते सर्व-लक्ष्मी-निधयो भवन्ति !!२१!!                                 !!श्री गणेश स्तोत्रम् सम्पुर्णम !!

शुक्रवार, 3 जून 2011

तन्त्र साहित्य की विशालता --- ३

अब आगे---------------------बौध्दो का शक्ति तन्त्र साहित्य भी कम महत्वपुर्ण नहीं है ! अनेकों संस्कृत ग्रन्थ इस संबन्ध में उपलब्ध है! कुछ के नाम इस प्रकार है -१-तारा कल्प,२--तारा तन्त्र,३-तारा प्रदीप,४-कल्पलता, ५-तारा कवच,६-तारा तत्व,७.तारा पंजिका,८-तारा पध्दिति,९-तारा पंचाग,१०-तारा पराजिका११-तारा पुजा प्रयोग,१२-तारार्जन चन्द्रिका,१३-तारा रहस्यवृतिका,१४-तारा पुजन न्यास विधि,१५-तारा पुजन बल्लरी,१६-तारा पूजन रसायन,१७-तारा तरंगनि,१८-तारा भविसिध्दर्णव,१९-तारा वर्ष,२०-तारा विलासदय,२१-तारा षटपदी,२२-तारा सहस्त्र,२३-तारा अष्टोत्तर आदि !                       सौन्दर्य लहरी के ३१ वें श्लोक की लक्ष्मीधर कृत टीका के अनुसार शुभागम पंचक के नाम इस प्रकार है---१.वशिष्ठ संहिता,२.सनक संहिता,३.शुक्र संहिता,४.सनन्दन संहिता,५.सनतकुमार संहिता!   ललिता सहस्त्रनाम के ८८ वें श्लोक पर सौभाग्य भास्कर की टीका के अनुसार २८ आगम इस प्रकार है---कामिक,योगज,कारण,प्रमृतागम,अजितागम,दीप्तगम,आशुमानागम,सुप्रमेदागम,विजवागम,निःश्वागम,स्वायम्भुवागम,अनलागम,वीरागम,रौत्रागम,मुकुटागम,विमलागम,चन्द्र्ज्ञागम,बिम्ब्रागम,प्रोध्दतागम,ललितागम,सिध्दागम,सन्तानागम,किरणागम,वातुखागम,सुक्ष्मागम,सहस्त्रागम,सर्वोत्तरागम,पर्मेश्वरागम !     आगे क्रमशः

गुरुवार, 2 जून 2011

तन्त्र साहित्य की विशालता----२

अब आगे--------------वाराही तंत्र में ५५ शिवोक्त तन्त्रों का नाम आता है !जिनमें ९,६४,९४९ श्लोक है,आगम तन्त्र विलास ग्रन्थ के लेखक का विश्वास है कि आज भी २०८ तन्त्र ग्रन्थ उपलब्ध है,बौध्दो के विशाल तन्त्र साहित्य में से आज संस्कृत भाषा के २ ग्रन्थ प्राप्त है ! तिब्बत में तन्त्र साहित्य को ७८भागों में बांटा गया है,इनमें से ६४० ग्रन्थ उपलब्ध है!                                                                                                                      जिस तरह से हिन्दु धर्म के तन्त्रो के निर्माण का श्रेय महादेव जी को दिया जाता है,उसी तरह बौध्द धर्म के तन्त्रो का निर्माण वज्रसत्व्शुध्द ने किया है! ऍसी मान्यता है कि यह तन्त्र भी संस्कृत भाषा में है और इसकी संख्या       काफी अधिक है,कुछ प्रधान बौध्द तन्त्र ग्रंथो के नाम उद्धृत है-                                                             १.परमार्थ सेवा                                                                                                                                           २.श्यामयमारि                                                                                                                               ३.साधनपरीक्षा ४.ज्ञानसिध्द                                                                                                                        ५.पासावतार                                                                                                                                        ६.प्रमोद महायुग                                                                                                                                        ७.बुध्द कपाल                                                                                                                                     ८.क्रिया समुच्चय                                                                                                                                  ९.वज्र सत्व                                                                                                                                         १०.उडायर                                                                                                                                        ११.हयग्रीव                                                                                                                                       १२.मायाजाल                                                                                                                                       १३.मंजु श्री                                                                                                                                           १४.योगनी संचार                                                                                                                                १५.मर्णि कर्णिका                                                                                                                                   १६.साधन संग्रह                                                                                                                                 १७.साधना कल्पलता                                                                                                                    १८.साधन संग्रह                                                                                                                                      १९.योगेश्वर                                                                                                                                      २०.डाकनी जाल                                                                                                                               २१.कालवीर तन्त्र का चन्डरोषण                                                                                                           २२.तारा                                                                                                                                               २३.वज्र धातु                                                                                                                                    २४.त्र्यलोक्य विजय                                                                                                                      २५.यमान्तक                                                                                                                                २६.संकीर्ण                                                                                                                                  २७.ज्ञानोदय                                                                                                                                         २८.गुह्य समाज                                                                                                                                    २९.साधना माला                                                                                                                                ३०.चक्र सांवर                                                                                                                                 ३१.सध्दर्म                                                                                                                                      ३२.सुखावत व्युहचक्र                                                                                                                    ३३.बाराही तन्त्र                                                                                                                             ३४.पिंडी कर्म                                                                                                                                     ३५.योगाम्बर पीठ                                                                                                                                      ३६.कालचक्रं                                                                                                                                   ३७.योगनी                                                                                                                                    ३८.तन्त्र समुच्चय                                                                                                                                 ३९.नाम संगीत                                                                                                                             ४०.बसंत तिलक                                                                                                                                     ४१.पीत यमारि                                                                                                                                      ४२.कृष्ण यमारि                                                                                                                                  ४३. शुक्ल यामरि                                                                                                                            ४४.रक्त यमारि                                                                                                                                ४५.संपुटौद्भव                                                                                                                                           ४६.हे वजु                                                                                                                                          ४७.सम्वरंत्रता सम्वरदय                                                                                                                      ४८.क्रिया संग्रह                                                                                                                                  ४९.क्रिया कद                                                                                                                                     ५०.क्रिया सागर                                                                                                                                   ५१.क्रिया कल्पद्रुम                                                                                                                           ५२.क्रियणम                                                                                                                                 ५३.अभिवानोतर                                                                                                                               ५४.साधना समुच्चय                                                                                                                           ५५.तत्व ज्ञानसिध्दि                                                                                                                      ५६.गुहा सिध्दि                                                                                                                               ५७.उछान                                                                                                                                  ५८.नागार्जुन                                                                                                                                         ५९.योग पीठ                                                                                                                                ६०.बजुबीर                                                                                                                                 ६१.मरीचि                                                                                                                                                   ६२. विमल प्रभा                                                                                                                                     ६३.संम्पुट                                                                                                                                               ६४.मर्म कालिका                                                                                                                            ६५.कुंरुकुल                                                                                                                                         ६६.भुतवमर                                                                                                                                      ६७.योगनी जाल                                                                                                                            ६८.योगाम्बर                                                                                                                                 ६९.वसुन्धरा सावन                                                                                                                                     ७०.नौरात्म                                                                                                                                                             ७१.डाकार्णव                                                                                                                                 ७२.क्रियासार                                                                                                                               ७३.क्रियावसान्त                                                                                                                          ७४.गढोत्पादनाभ संगति  निष्पन्न योगाम्बर तन्त्र आदि !अनेक बौध्द तन्त्रो का चीनी तथा तिब्बती भाषा में अनुवाद हो चुका है !                                                                                                      आगे क्रमशः

मंगलवार, 31 मई 2011

तंत्र साहित्य की विशालता

कोई समय था जब तंन्त्रो क विशाल साहित्य उपलब्ध था आज उसमें से बहुत कम देखने को आता है!तंन्त्र ज्ञान के अभाव के कारण जन साधारण के द्वारा  इस साहित्य के प्रति जो उपेक्षा  का भाव बरता गया,उसके अध्ययन और विकास की ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया,अतःउसका विलुप्त होना स्वाभाविक ही था !
कहा जाता है कि बौध्दों के नालन्दा विश्वविद्दालय मेंअन्य विषयो के साथ तन्त्र भी अध्यापन का एक विषय था,क्योंकि बौध्दों का भी अपना भी तंत्र साहित्य है,परन्तु मुस्लिम राज्य के समय वह साहित्य नष्ट हो गया ! रसिक मोहन चट्टोपाध्याय ने कुछ तन्त्र ग्रन्थों को बचाया ! सर जान बुडरफ ने अनेकों तन्त्रों का उध्दार किया!                                                                                                                                                        वेदों की तरह तन्त्र का भी बहुत विस्तार था!जो संकेत मिलते है,उनसे उनकी विशालता का अनुमान लगाया जा सकता है! तन्त्र ग्रंथो में कहा गया है -- "सप्त सप्त सहस्त्रणि संख्यातानि मनीषिभिः !"                                                 इस उदाहरण के अनुसार तो १४००० तन्त्र ग्रंथो के प्रचलन की सूचना मिलती है !इस समय बहुत कम साहित्य उपलब्ध है!                                                                                                                                                 तंत्रो के मानने वालो के अनेक सम्प्रदाय थे ! उनका अपना अपना अलग साहित्य था! वैष्ण्व आगम १०८, आगम २८, और सक्ति आगमों में ६४ कोल ग्रंथ,८मिस्र,और ५ समर्थ आगम माने जातेहै!                                              सक्ति सम्प्र्दाय में तीन विभाग है----१.कोल आगम,२.मिस्र आगम, ३.समर्थ आगम ! सक्ति विषयक तंत्र शास्त्र व्यूहो में विभक्त है,सत्वादि तीन गुणो के अनुसार इन व्यूहों को तंत्र,यामल और डामर कहा जाता है,प्रत्येक के ६४ ग्रन्थों को समास कर सारा साहित्य १९२ ग्रन्थों को स्वीकार किया जाता है! !                                                                     आगे क्रमशः

सोमवार, 30 मई 2011

कन्या का विवाह कब होगा ?

विवाह की आयु - गोचर का गुरु जब लग्न,त्रितीय,पंचम,नवम या एकादश भाव में आता है,उस वर्ष विवाह होता है! विशेषकर लग्न अथवा सप्तम बाव मेंआने पर विवाह हो जाता है! तथापि संबध्द वर्ष में शनि की दृष्टि लग्न अथवा सप्तम भाव पर नहीं होनी चाहिए !                                                                                                                    विवाह का वर्ष निकालने की एक अन्य विधि इस प्रकार है - सप्तम में जिस क्रम की राशि स्थित हो ,उस राशि के अंक में १० जोड़ें ! अब देखें कि सप्तम में कितनें पाप ग्रहों की दृष्टि है! ऍसे प्रत्येक ग्रह के लिए चार अंक जोड़े ! उदाहरण के लिए मान लेते हैं कि सप्तम भाव में सिंह राशि स्थित है,तो इस राशि के ५ अंक में १० जोड़े! अब यदि सप्तम भाब पर तीन पाप ग्रहों कि दृष्टि पड़ रही है तो ५+१०+१२=२७वर्ष की आयु में विवाह होने की सम्भावना है!                                           विवाह का वर्ष निकालने की एक अन्य विधि इस प्रकार है - सप्तम में जिस क्रम की राशि स्थित हो ,उस राशि के अंक में १० जोड़ें ! अब देखें कि सप्तम में कितनें पाप ग्रहों की दृष्टि है! ऍसे प्रत्येक ग्रह के लिए चार अंक जोड़े ! उदाहरण के लिए मान लेते हैं कि सप्तम भाव में सिंह राशि स्थित है,तो इस राशि के ५ अंक में १० जोड़े! अब यदि सप्तम भाब पर तीन पाप ग्रहों कि दृष्टि पड़ रही है तो ५+१०+१२=२७वर्ष की आयु में विवाह होने की सम्भावना है!     पति कैसा मिलेगा----अगर कोई शुभ ग्रह (चन्द्र,गुरु,शुक्र) सप्तम भाव में स्थित हो,या इन भावो का स्वामी हो,या इन भावो को देख रहा हो ,तो समझें कि लगभग सम आयु का पति प्राप्त होगा,परन्तु यदि कोई पापी ग्रह (सुर्य,मंगल,शनि,राहु,केतु)सप्तम को अपनी स्थिति,दृष्टि या भावेश होने के नाते प्रभावित कर रहा है,तो मानेके अपनी से बड़ी आयु का पति प्राप्त होगा!                                                                                                        पति की  नौकरी,उसके भाई-बहन एवं आयु---नवम भाव में स्थित ग्रह तथा उस पर द्र्ष्ति डालने वाले ग्रहो के आधार पर पति के भाई बहनों क़ि संख्या को जाना जाता है,पुरुष और स्त्री ग्रह क्रमशः भाई बहनो को संकेत करता है!चतुर्थ भाव या चतुर्थेश बलयुक्त हो,तो पति की अजीविका के बारे में समझ सकते हैं!द्वतीयेश शुभ स्थान में हो अथवा अच्छी स्थिति में हो कर द्वतीय भाव को दृष्ट करता हो,तो पति दीर्घायु होता है!

रविवार, 15 मई 2011

योग एवं योगो का अध्ययन भाग - 1

जन्म पत्रिका में योगो का अध्ययन करने के लिये निम्न बातों क विशेष ध्यान रखना चाहिए-
१.लग्नेश कौन ग्रह है और कहां बैठा है?                                                                                                   २.कौन ग्रह कहां बैठा है?                                                                                                                         ३.पूरी कुन्डली में कितने ग्रह् स्वक्षेत्री,मित्रक्षेत्री और शत्रुक्षेत्री हैं?                                                                       ४. उच्च ग्रह कितने और नीच ग्रह कितने हैं?                                                                                              ५. किस ग्रह की दृष्टि कहां कहां हैं ?                                                                                                              ६. क्या ग्रह उच्च्बली,नीचबली और हीनबली हैं?                                                                                              ०७. पुरी कुन्डली का प्रभाव कैसा हैं?                                                                                                          सावधानीपुर्वक उपरोक्त बातों पर विचार करने के बाद ही फलादेश करना चाहिए !आगे कुछ प्रसिध्द योग दिये जा रहें हैं जिनका अध्ययन सावधानीपुर्वक करना अत्यन्तावश्यक है !                                                                                                                                                               राज योग -.                                                                                                                                           -जिस जातक की कुन्डली में चार ग्रह उच्च के हों या मूल त्रिकोण में हों वह अवश्य मन्त्री या राज्यपाल बनता है. -.शुक्र बुध और बृहस्पति केन्द्र में हों तथामंग ल लग्न से दसवे में हो, तो जातक उच्च पद प्राप्त करता है.               -जिस जातक के मेष लग्न में चन्द्रमा और मंगल हो,तो वह जनमत प्राप्त करता हुआ संसद में बैठता हैं.            -.मेष लग्न में उच्च का सुर्य हो नवम में बृहस्पति तथा दशम में मंगल हो ,तो वह जातक राज्यपाल बनता है!                                                                                                                                                             --यदि मेष लग्न में भौम और गुरु दोनों साथ-साथ बैठै हो,तो वयक्ति केन्द्र में मन्त्री बनता हैं और विदेशों का भ्रमण करता हैं !                                                                                                                                                -- यदि जातक का जन्म मेष लग्न में हुआ हो तो और उसे कोई पाप ग्रह देख रहा हो तो ,येसा वयक्ति शासनाधिकारी होता है!                                                                                                                         --यदि मेष लग्न में पाप ग्रह हो और बृहस्पति नवम भाव मे हो तो जातक केन्द्रीय मन्त्री का पद ग्रहण करता हैं !   -- मेष लग्न कि कुन्डली में एकादश भाव में चन्द्रमा  तथा बृहस्पति हो एवं उन पर शुभ ग्रहो की दृष्टि हो तो वह राज्य में उच्च सम्मान प्राप्त करता हैं !                                                                                                        -- जातक की कुन्डली में मेष लग्न हो और उसमें चन्द्र स्थित हो तथा कुम्भ में शनि ,सिंह में सुर्य एवं वृश्चिक में बृहस्पति हों तो जातक उच्च पदासीन होता हैं !                                                                                            -- कर्क लग्न हो छठे में सुर्य,चौथें में शुक्र,दशम में गुरु एवं सप्तम पर बुध स्थित हो तो जातक उच्च पदासीन होता हैं !                                                                                                                                                      --कर्क लग्न में चन्द्र्मा हो और दशम भाव में बृहस्पति एवं भौम हो,तो जातक नेता बनता हैं !                            --मकर लग्न कि कुन्डली में लग्नस्थ शनि हो तथा मिथुन में भौम,कन्या में बुध, तथा धनु में गुरु हों,तो जातक नेतृत्व देने में पूर्णतः सफल होता हैं !                                                                                                            -- मीन लग्न हो लग्नस्थ चन्द्रमा हो,कर्मस्थ शनि हो,सुखस्थ बुध हो,तो जातक सांसद या नेता बनता है !          -- यदि लग्न में सुर्य एवं उच्च का चन्द्रमा हो तो जातक विदेश विभाग में सचिव होता हैं !                                  -- मूल त्रिकोण में उच्च का मंगल तथा शुक्र हो,तो जातक खाद्य मन्त्री का पद ग्रहण करता हैं !                      --तुला में शुक्र मेष में भौम तथा कर्क में ब्रहस्पति हो,तो जातक शासकीय कार्यो में उच्च पद ग्रहण करता हैं !           -- धनु में सुर्य तथा लग्न में उच्च का शनि हो,तो जातक राज्य की गुप्त मन्त्रणा में भाग लेता हैं !                        -- जातक की कुन्ड्ली में सभी ग्रह उच्च के हो तथा मित्र ग्रहों द्वारा देखें जाते हों ,तो व्यक्ति शासन में विशिष्ठ पदो पर आसीन होते हैं !                                                                                                                                  -- लग्नेश तथा राशीश लग्न में हो तथा नवम भाव मेम चन्द्रमा हों,तो व्यक्ति शासन में विपक्ष का अध्य्क्ष होता हैं!  --केन्द्र स्थान में पाप ग्रह न हों तथा शुभ ग्रह अपनी राशियों में हों,तो व्यक्ति राजदुत के पद पर प्रतिष्ठत होता हैं !  -- लग्न में ग्रह उच्च हों तथा वह शुभ ग्रह से दृष्ट हों या लग्नेश केन्द्र में मित्र ग्रहो से दृष्ट हों,तो विशिष्ठ राजयोग होता हैं !                                                                                                                                                  -- जन्मकुन्डली में समस्त ग्रह अपनें परमोच्च में हों तथा बुध अपनें उच्च के नवांश में हो,तो जातक देश के सर्वश्रेष्ट पद पर आसीन होता हैं !                                                                                                                  -- यदि कुन्डली में पूर्ण चन्द्रमा पर सब ग्रहो की दृष्टि हो,तो जातक उच्च राज्यधिकारी होता है !                            क्रमशः