गुरुवार, 16 अगस्त 2012

कालसर्प योग के स्पष्ट ग्रहयोग


स्पष्ट कालसर्प योग के ग्रहयोग
१- जन्मांग में चोथे और दसवे स्थान में राहू केतु हो तो
२- जन्मांग में पांचवे और ग्यारहवे स्थान राहू केतु हो तो
३-जन्मांग में छठे और बारहवे स्थान में राहू केतु हो तो,
४- जन्मांग के सातवे और पहले स्थान में राहू केतु हो,
५- जन्मांग के छठे और दूसरे स्थान में राहू केतु हो तो,
६- जन्मांग के नोवे और तीसरे स्थान में राहू केतु हो तो,
कालसर्प योग स्पष्ट रूप से बनता हैं.जन्मांग में १,३,९,११, इनमे से किसी स्थान में राहू बैठा हो तो नुकसान पहुचता हैं. सभी प्रकार के दुःख जातक को भोगने पड़ते हैं. नवम स्थान का में राहू होने पर आज करोड़पति काल कंगाल बनता हैं. दसम स्थान में राहू हो तो शासनकर्ता होने पर भी भिखमंगा बनता हैं. पंचम स्थान में राहू हो तो ऐसा जातक काम मात्रा में संतति सुख पता हैं.
जन्मांग में ‘पूर्ण कालसर्प’ हो तो उस जातक को राहू की महादशा या अंतर्दशा में में बुरे फल भोगने पड़ते हैं. गोचर भ्रमण से भी जब राहू अशुभ चलता हो तो उसके दुस्परिनाम भोगने पड़ते हैं. शनि की पनोती में भी कालसर्प योग वाले व्यक्ति को बहुत कुछ भोगने पड़ते हैं.
७- जन्मांग में लगन में राहू या सप्तम स्थान में राहू या केतु हो एवम ८,९,१०,११,१२ स्थानों में अन्य गृह हो तो ‘प्रकाशित’ कालसर्प योग बनता हैं.
८- राहू या केतु के दायिनी या बाएई तरफ रवि,चंद्र,मंगल बुध,गुरु,सुक्र,शनि – ये सब गृह इसी तरह हो तो कालसर्प योग बनता हैं.
९- राहू का चुम्बकीय तत्व दक्चिन दिशा में हैं और केतु का उत्तर दिशा में हैं.राहू केतु के बीच लगन और सप्त गृह हो या राहू केतु अन्य ग्रहों की युक्ति में हो तो कालसर्प योग बनता हैं.
१०- सात गृह एवम लगन राहू केतु की वक्र गति में आते हो तो कालसर्प योग बनता हैं.
११- राहू के अष्टम स्थान में में शनि हो तो कालसर्प योग बनता हैं.
१२- चंद्र से राहू या केतु आठवे स्थान में हो हो तो कालसर्प योग बनता हैं.
१३- जन्मांग में ६,८,१२ इन स्थानों में किसी स्थान में राहू हो कालसर्प बनता हैं.
१४- राहू या केतु कोण में या केंद्र में हो तो कालसर्प योग बनता हैं.
१५- राहू केतु का भ्रमण उल्टा होता हैं राहू केतु के मुह में जब शभी गृह जाते हो तो कालसर्प योग बनता हैं.
१६- जन्मांग में गृह स्थिति कुछ भी हो पर यदि योनी सर्प हो तो निश्चित रूप में कालसर्प योग बनता हैं.
१७-कोई भी गृह सम रासी में हो और वह नक्च्त्र या अंशात्मक द्रस्टी से राहू से दूर हो तो कालसर्प योग नही बनता हैं.
१८- राहू केतु के बीच ६ गृह हो और एक गृह बाहर हो वह गृह राहू के अंश से ज्यादा अंश में हो तो कालसर्प योग भंग होता हैं.
१९- कालसर्प योग की कुण्डली देखते समय एक विशेष बात हमारी समझ में आई हैं,वह यह कि ‘कालसर्प योग’ परिवार के एक ही सदस्य के जन्मांग में नही रहता. वह परिवार के और भी सदस्यों कि कुण्डली में में पाया जाता है इसलिए पुरे परिवार के सदस्यों के जन्मांग देखकर कालसर्प योग के बारे में निर्णय लेना चाहिए.
                                                                                                                          raman jyotish sansthan

गुरुवार, 7 जून 2012

श्रीबगला कीलक-स्तोत्रम्.

श्रीबगला कीलक-स्तोत्रम्.
ह्लीं ह्लीं ह्लींकार-वाणे, रिपुदल-दलने, घोर-गम्भीर-नादे !
ज्रीं ह्रीं ह्रींकार-रुपे, मुनि-गण-नमिते, सिद्धिदे, शुभ्र-देहे !
भ्रों भ्रों भ्रोंकार-नादे, निखिल-रिपु-घटा-त्रोटने, लग्न-चित्ते !
मातर्मातर्नमस्ते सकल-भय-हरे ! नौमि पीताम्बरे ! त्वाम् ।। १
क्रौं क्रौं क्रौमीश-रुपे, अरि-कुल-हनने, देह-कीले, कपाले !
हस्रौं हस्रौं-सवरुपे, सम-रस-निरते, दिव्य-रुपे, स्वरुपे !
ज्रौं ज्रौं ज्रौं जात-रुपे, जहि जहि दुरितं जम्भ-रुपे, प्रभावे !
कालि, कंकाल-रुपे, अरि-जन-दलने देहि सिद्धिं परां मे ।। २
हस्रां हस्रीं च हस्रैं, त्रिभुवन-विदिते, चण्ड-मार्तण्ड-चण्डे !
ऐं क्लीं सौं कौल-विधे, सतत-शम-परे ! नौमि पीत-स्वरुपे !
द्रौं द्रौं द्रौं दुष्ट-चित्ताऽऽदलन-परिणते, बाहु-युग्म-त्वदीये !
ब्रह्मास्त्रे, ब्रह्म-रुपे, रिपु-दल-हनने, ख्यात-दिव्य-प्रभावे ।। ३
ठं ठं ठंकार-वेशे, ज्वलन-प्रतिकृति-ज्वाला-माला-स्वरुपे !
धां धां धां धारयन्तीं रिपु-कुल-रसनां मुद्गरं वज्र-पाशम् ।
डां डां डां डाकिन्याद्यैर्डिमक-डिम-डिमं डमरुं वादयन्तीम् ।। ४
मातर्मातर्नमस्ते प्रबल-खल-जनं पीडयन्तीं भजामि ।
वाणीं सिद्धि-करे ! सभा-विशद-मध्ये वेद-शास्त्रार्थदे !
मातः श्रीबगले, परात्पर-तरे ! वादे विवादे जयम् ।
देहि त्वं शरणागतोऽस्मि विमले, देवि प्रचण्डोद्धृते !
मांगल्यं वसुधासु देहि सततं सर्व-स्वरुपे, शिवे ! ।। ५
निखिल-मुनि-निषेव्यं, स्तम्भनं सर्व-शत्रोः ।
शम-परमिहं नित्यं, ज्ञानिनां हार्द-रुपम् ।
अहरहर-निशायां, यः पठेद् देवि ! कीलम् ।
स भवति परमेशि ! वादिनामग्र-गण्यः ।।