मंगलवार, 31 मई 2011

तंत्र साहित्य की विशालता

कोई समय था जब तंन्त्रो क विशाल साहित्य उपलब्ध था आज उसमें से बहुत कम देखने को आता है!तंन्त्र ज्ञान के अभाव के कारण जन साधारण के द्वारा  इस साहित्य के प्रति जो उपेक्षा  का भाव बरता गया,उसके अध्ययन और विकास की ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया,अतःउसका विलुप्त होना स्वाभाविक ही था !
कहा जाता है कि बौध्दों के नालन्दा विश्वविद्दालय मेंअन्य विषयो के साथ तन्त्र भी अध्यापन का एक विषय था,क्योंकि बौध्दों का भी अपना भी तंत्र साहित्य है,परन्तु मुस्लिम राज्य के समय वह साहित्य नष्ट हो गया ! रसिक मोहन चट्टोपाध्याय ने कुछ तन्त्र ग्रन्थों को बचाया ! सर जान बुडरफ ने अनेकों तन्त्रों का उध्दार किया!                                                                                                                                                        वेदों की तरह तन्त्र का भी बहुत विस्तार था!जो संकेत मिलते है,उनसे उनकी विशालता का अनुमान लगाया जा सकता है! तन्त्र ग्रंथो में कहा गया है -- "सप्त सप्त सहस्त्रणि संख्यातानि मनीषिभिः !"                                                 इस उदाहरण के अनुसार तो १४००० तन्त्र ग्रंथो के प्रचलन की सूचना मिलती है !इस समय बहुत कम साहित्य उपलब्ध है!                                                                                                                                                 तंत्रो के मानने वालो के अनेक सम्प्रदाय थे ! उनका अपना अपना अलग साहित्य था! वैष्ण्व आगम १०८, आगम २८, और सक्ति आगमों में ६४ कोल ग्रंथ,८मिस्र,और ५ समर्थ आगम माने जातेहै!                                              सक्ति सम्प्र्दाय में तीन विभाग है----१.कोल आगम,२.मिस्र आगम, ३.समर्थ आगम ! सक्ति विषयक तंत्र शास्त्र व्यूहो में विभक्त है,सत्वादि तीन गुणो के अनुसार इन व्यूहों को तंत्र,यामल और डामर कहा जाता है,प्रत्येक के ६४ ग्रन्थों को समास कर सारा साहित्य १९२ ग्रन्थों को स्वीकार किया जाता है! !                                                                     आगे क्रमशः

2 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छा प्रयास है भास्कर जी पर हलके पृष्ठ भूमि पर गहरे रंग का शब्द अधिक स्पष्ट समझ आएगा !तंत्र के इतिहास के बारे में अच्छी जानकारी है ! HORARY ASTROLOGY पर लेख लिखने जा रहा हूँ मेरे ब्लॉग पर ज्योतिष संग्रह में आपको पढ़ने मिल जाएगा !जय गणेश !

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